Wednesday 20 February 2008

मुशर्रफ !! अमरीका तुम्हे मरने नहीं देगा, हम तुम्हे जीने नहीं देंगे

अंतत: मुशर्रफ गलती कर ही बैठे. मजे से पूरे देश पर सेना के जनरल की तरह शासन चल रहा था.जनता यहां वहां थोडी बहुत ना-नुकुर कर तो रही ठीक परंतु हालात इतने खराब नहीं थे, क्यों कि पीछे से अमरीका का पूरा साथ था.
लेकिन जैसे हर जनरल का कभी न कभी अंत आता ही है, मियां मुशर्रफ भी लालच में आ ही गये. सोचा होगा कि किसी तरह एक बार जम्हूरियत (Democracy) का झुनझुना दिखाकर सत्ता हथिया ली तो फिर कोई चुनौती देने वाला भी नहीं बचेगा, आका ( अमरीका ) खुश होगा ,सो अलग. यानी दोनो हाथॉं में लड्डू. पर पांसा उल्टा पड गया.
1975 में जब श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने भारत में आपात काल घोषित किया था, तब उन्हें भी भान नहीं था कि कहीं न कहीं जनता विरोध भी कर सकती है. जब विरोध की सुगबुगाहट बढने लगी, तो इन्दिराजी ने भी वैसा ही सोचा था,जो मुशर्रफ ने अब सोचा था. जैसा इन्दिरा जी को झेलना पडा ( शाह कमीशन की जांच, फिर गिरफ्तारी आदि..), अब मुशर्रफ की बारी है.

भारत में तो लोक्तंत्र की जडें मज़बूत थीं और कानून-judiciary भी काफी हद तक़ स्वतंत्र ठीक सो वह बच भी गयीं और फिर शानदार वापसी भी की, परंतु पाकिस्तान और भारत की तुलना सम्भव नहीं है. जिस तरह मुशर्रफ ने वहां अदालत judiciary को तिगनी का नाच नचाया था, अब वही judiciary उनके पीछे पड जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये.

और फिर पाकिस्तान में तो यह खेल बहुत पुराना है. हर तानाशाह इस परिस्थिति से गुजरा है. बचा भी कोई नहीं, अयूब खां हों या जनरल टिक्का खां,और या जिया उल हक़, सबके सब उसी गति को प्राप्त हुए. अत: माना जाना चाहिये कि अब मुशर्रफ भी क़तार में है.

सरकार कौन बनाता है और कितने दिन चला पाता है, यह कहना पाकिस्तान जैसे मुल्क के लिये कुछ ज्यादा ही मुश्किल है.
हां एक बात ज़रूर ,कि भारत के सम्बन्ध कोई सुधरने वाले नहीं हैं. जब भी पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन हुआ है, भारत के सम्बन्ध बिगडे ही हैं.

1 comment:

Shiv Kumar Mishra said...

सर, मुशर्रफ साहब नहीं रहेंगे तो कोई मुशर्रफ-II आयेंगे. अभी तो केवल वोटिंग हुई है. सेटिंग बाकी है. सेटिंग हो भी गई तो उसे बिखरने में कितना वक्त लगना है. एक बार दरार पडी नहीं कि कोई मुशर्रफ-II आयेंगे सीन में. हाथ में एक बोर्ड होगा जिसपर लिखा रहेगा; "जनरल सर्विसेस रीजुम्ड". बोर्ड को इतनी मजबूती से गाड़ देंगे कि कम से कम तीन-चार साल टिका रहे. उसके बाद फिर जम्हूरियत लाने की गुहार. फिर चुनाव. फिर मुशर्रफ-II का जाना और जम्हूरियत लाने वाले किसी तारनहार की खोज. फिर चुनाव. फिर सरकार..........

ये तो जम्हूरियत और सेना का अनवरत रोलिंग प्लान है. चलता रहेगा.