Tuesday 5 February 2008

लाइये जुगनू कहीं से खोजकर , और हमको रास्ता दिखलाइये

एक चिंगारी कहीं से लाइये,
इन बुझे शोलों को फिर भडकाइये.


इस अन्धेरे को मिटाने के लिये,
रोशनी का एक क़तरा चाहिये.


लाइये जुगनू कहीं से खोजकर ,
और हमको रास्ता दिखलाइये.


आपकी हर बात पर विश्वास है,
आप तो झूठी कसम मत खाइये.


क्या पता कोई कही ठुकरा न दे,
सबके आगे हाथ मत फैलाइये.

हर जगह सम्वेदना मिलती नहीं,
हर किसी का द्वार मत खटकाइये.


फेंकिये सारी नक़ाबें नोचकर,
असली चेहरा सामने तो लाइये

2 comments:

अमिताभ मीत said...

अच्छे शेर. ग़ज़ल अच्छी है, बधाई.

कंचन सिंह चौहान said...

आपकी हर बात पर विश्वास है,
आप तो झूठी कसम मत खाइये.

हर जगह सम्वेदना मिलती नहीं,
हर किसी का द्वार मत खटकाइये.

bahut khub