Friday 21 March 2008

बृज की एक और होरी

मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे
हे थई थई खेलें सांवरे
हां थई थई खेलें सांवरे
थई थई खेलें सांवरे,
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे.


अरे कैसे आवें ग्वालिनें, अरे कैसे आवें ग्वालिनें ?
और कैसें आवें ग्वाल ?,नगर मे थई थई.....
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे

अरे नाचत आवें ग्वालिनें, अरे नाचत आवें ग्वालिनें ?
और गावत आवें ग्वाल ?,नगर मे थई थई.....
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे.

अरे कहां से आवें ग्वालिनें, अरे कहां को जावें ग्वालिनें ?
और कहां से आवें ग्वाल ?,नगर मे थई थई.....
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे

अरे मथुरा से आवें ग्वालिनें, अरे मथुरा से आवें ग्वालिनें ?
और गोकुल जावें ग्वाल ?,नगर मे थई थई.....
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे.


अरे का करती हैं ग्वालिनें, अरे का करती हैं ग्वालिनें ?
और का करते हैं ग्वाल ?,नगर मे थई थई.....
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे

अरे गऊ चरावें ग्वालिनें, अरे गऊ चरावें ग्वालिनें ?
और माखन खावें ग्वाल ?,नगर मे थई थई.....
मथुरा वृन्दावन बीच डगर मे थई थई खेलें सांवरे.

होली की एक शाम यानी बृज की होरी

शाम हुई और मन हुरियारा हो गया.
फागुन की हवा में ही कुछ ऐसी मस्ती होती है
कि मन करता है कुछ रंगीन्,
कुछ चुलबुली शरारत ,
कुछ छेडछाड़ की जाये

किसी की चुनरी भिगोई जाये
किसी को चिकोटी काटी जाये.
किसी से चुहल की जाये.
और कुछ नहीं
तो बस मस्ती में अकेले ही झूम लिया जाये
.......
.....

और बस यूं ही कुछ पुरानी होली याद आयी ....ऐसे ...


कमल फूल जल में बाढे, और चन्दाआआआ हो उगे आकाश,
मेरो मना पिउ में लागो
और पिउ को हहो मोमें हतु नांय
पिउ बिन होरी को खेलै ?
हो पिउ बिन होरी को खेलै ?

कोजा बसे गढ आगरें, और कोजा औरंगाबाद
कोजा बसे गढ सांकरे और कोजा चन्दन चौपार
मेरो मना पिउ में लागो
और पिउ को हो मोमें हतु नांय
पिउ बिन होरी को खेलै ?
हो पिउ बिन होरी को खेलै ?


देवरा बसे गढ आगरें, और जेठा औरंगाबाद
ससुर बसे गढ सांकरे और बलमा चन्दन चौपार
मेरो मना पिउ में लागो
और पिउ को हो मोमें हतु नांय
पिउ बिन होरी को खेलै ?
हो पिउ बिन होरी को खेलै ?

पंगेबाजी पर प्रतिबन्ध

हर कोई होली पर हुरिया जाता है. बडा हो या छोटा. खरा हो या खोटा ( खोता भी). दुबला हो या मोटा. घोटालेबाज हो या पंगेबाज. बस दूसरों की "की मत " पर मौज़ां ही मौज़ां लेना चाहता है.
समीर हो जाते हैं समीरा. वह रेड्डी- (या ready) हैं या नहीं ,ये तो खुद ही बतायेंगे .
par guru janataa to bharmaa hee jaatee hai naa!!!!

हम कहते है, पंगे लो, ज़रूर लो, पर यह सोच के मत लो कि लेना है.

पंगों का तो यूं होना चाहिये कि लिया लिया, ना लिया नालिया. ( वाह! वाह!! तालिया, तालिया).

पंगे लो, पर बता के मत लो कि ले रहे हैं ( छुप छुप के ले लो ना, बिना बताये)





देखो भैया जी, , हम थोडा बहुत हुरिया गये थे, इसलिये ये सब बकवास लिख मारी है.
पढो, पढो, ना पढो, तो ना पढो

घर हो या ससुराल, मजे लो होली में.

नाचो दे दे ताल ,मजे लो होली में,
गालों मलो गुलाल, मजे लो होली में.


रंग -बिरंगे चेहरों में ढूंढो धन्नो,
घर हो या ससुराल, मजे लो होली में.


हुस्न एक के चार नज़र आयें देखो,
ऐनक करें कमाल,मजे लो होली में.


ऐश्वर्य जब तुम्हे पुकारे "अंकल जी"
छू कर देखो गाल, मजे लो होली में.

लड्डू पेडे गूझे,गुझिया,माल पुआ,
खाओ सब तर -माल मजे लो होली में.

मिले रंग में भंग, मज़ा तब लो दूना,
बहकी बहकी चाल, मजे लो होली में.

बीबी बोले मेरे संग खेलो होली,
बैठो सड्डे नाल मजे लो होली में.



नाचो दे दे ताल ,मजे लो होली में,
गालों मलो गुलाल, मजे लो होली में.