Sunday 13 January 2008

दिल्ली ब्लोग्गर्स मीट : खूब चर्चा थी कि गालिब के उडेंगे पुर्जे

खूब चर्चा थी कि गालिब के उडेंगे पुर्जे
देखने हम भी गये थे पर तमाशा न हुआ.
शनिवार को सुबह 10 बजे से दो बजे तक क्लास थी ,अत: चाहकर भी ब्लौग्गर्स मीट मे सुबह नही पहुंच पाया. अफ्सोस था कि कई चर्चे छूट जायेंगे,पर संतोष था कि कुछ तो पल्ले पडेगा,यदि तीन बजे तक भी पहुंच गये तो.
पहले तो गाडी हाईवे पर गलत लेन में घुसेड दी अत: तीन किमी. का चक्कर लगाना पडा. फिर ( इश्क़ की) घुमावदार गलियों में घूम घूम कर जब फार्म नम्बर 31 पहुंचा तो एन डी टी वी वाले कैमरामेन किसी का साक्षात्कार ले रहे थे.लगा कि मामला खत्म सा हुआ जाता है. परंतु नहीं .आगे चलकर दिखा कि कोई महाशय खडे खडे घूम घूम कर “प्रवचन” जैसा कुछ कर रहे है. , वहीं एक खाली कुर्सी देखकर में भी धंस लिया. भाषण जारी था, परंतु मेरी निगाहें किन्ही परिचित हिन्दी ब्लौगरों को खोज रहीं थी. अचानक किसी जुमले पर मैं भी हंसा और मेरे आगे बैठे सज्जन भी. मैने उनकी ओर देखा ,उनने मुझे . आंखे चार हुई. अरे! ये तो अपने मैथिली जी थे . नमस्कार हुआ. फिर उनके बगल मे बैठे सिरिल भी. थे कुछ क्षणों बाद प्रिय शैलेश भारतवासी भी दीख गये,तो लगा कि अपरिचितों के बीच नहीं हूं मैं.

इस बीच वह अंग्रेजी बोलने वाले ( जो बीच बीच में बता देते थे कि वह माइक्रोसोफ्ट के कर्मी हैं) ने अपनी बात समाप्त की. बात चीत का लहजा दोस्ताना था, परंतु महौल में कोई गर्मजोशी नहीं दिखी ( खुले आसमान के नीच बैठे थे सब और हवा में भी कडक की ठन्ड थी ) .बाद में जाना कि वह शख्स अभिशेक बख्शी जी थे). मैं तो हिन्दी ब्लोग जगत के प्रतिनिधि अमित भाई को ढूंढ रहा था, जो कहीं नजर न आये, मैं समझा ,सुबह के सत्र में आये होंगे). फिर चकल्लसी चक्रधर जी दिखे. माइक पर पहुंच कर उन्होने हिन्दी ब्लोग जगत के आंकडे बताये( जिनमें मैथिली जी ने टोक कर सुधार किया). फिर ( शायद चिट्ठाजगत से) हिन्दी ब्लोग के वर्गीकरण के आंकडे बताये. ळब्बा लुवाब यह कि हिन्दी में ग्रोथ कम है.
फिर उन्होने अपने ब्लोग के बारे में भ्रम दूर किया. उन्होने उस बालिका का जिक्र भी किया( वह भी मौजूद थीं) जो उनका ब्लोग लिखती है. इस सन्दर्भ में वे उस “खाली” पोस्ट का भी जिक्र कर गये जिस पर अनेक प्रतिक्रियायें आयीं.कुछ को उन्होने पढकर भी सुनाया) ( इसमें मेरी भी एक प्रतिक्रिया थी) और श्रेय लिया कि सम्भवत: वह अकेले ऐसे ब्लोगर है,जिन्हे कोरी पोस्ट पर भी टिप्पणी मिली.

फिर सारे के सारे ( लग्भग 30 लोग ही बचे थे ) bon-fire की तरफ शिफ्ट हो गये. ओपेन हाउस शुरू हुआ. किस तरह नेट्वर्किंग की जाये, कंटेंट शेयर ,ब्लोग्स की रेटिंग, नये ब्लोगरों को आगे लाने की बात, बार केम्प का आयोजन, ब्लोगरों मे गुट्बन्दी कैसे समाप्त की जाये( विशेष रूप से तमिल्नाडु में ऐसे चलन का जिक्र हुआ) आदि विषयों पर चर्चा हुई. एक ब्लोग से दूसरे पर लिंक देने की बात भी हुई. अजय जै, आशीष चोपरा आदि लगातार अपने विचार रखे जा रहे थे.

हिन्दी जगत से हिन्द-युग्म के शैलेश, गाहे-बगाहे के विनीत, भडास के यशवंत, ब्लोग्वाणी के सिरिल, सराइ संस्था के राकेश, सृजन शिल्पी , चक्रधर , आदि ने विचार रखे. शैलेश ने अपनी सेवाएं प्रस्तुत की यदि उन्हें प्रायोजक मिल जाये. ( बाद मे शैलेश आश्चर्य कर रहे थे कि इन लोगों को प्रायोजक मिल गया, हमें क्यों नही मिलता, मैने कहा कि यही तो फर्क है-भारत और इंडिया में). ठंड बढने लगी थी, चाय के दो दौर आग के चारों ओर घूमते घूमते चल चुके थे. आयोजकों ने इशारे समझे और .....

इस तरह समापन हुआ इस आधी अधूरी पिक्निक का .

2 comments:

CG said...

बहुत सुंदर रिव्यु, लेकिन विश्वास है, जो इस बार न हो पाया, अगली बार होगा. इस ब्लागर मीट के आयोजकों का उत्साह देखने लायक था.

राजीव तनेजा said...

अच्छा वर्णन.....
हम नहीं पहुँच पाए तो क्या गम...
आँखो देखा हाल तो जान ही लिया...

इस बार नहीं तो अगली बार सही...
उसके बाद तो बार बार यही