Friday 11 December 2009

यू.पी के करौ चार हिस्सा, हमें देउ हमारौ बृज प्रदेश,

अब सुनौ लल्ला सौ की सूधी एक बात. तुम्हाई सुन लई भौत. अब तुम्हें सुनने परैगी हम्हाई. तुम तेलंगाना मांगौ चायें मांगौ गोरखा लैंड. हमाई बला सें. हमें जामें कछू बुराई नायं लगत. लेकिन अब हमें चूना मती लगाउ.

जब तुम सबै सब कछू बांट रये हो, तुम हम ने कौन सी तुम्हाई भैन्स खोल रखी है. का हमें नायं देउगे हमाउ हिस्सा?
का कही ? हमें का चईयें ?अरे लल्ला हमें चईयें हमाऔ बृज प्रदेश .

अब और सुनौ कि हमें कैसौ बृज प्रदेश चईयें. हमारौ जो बृज प्रदेश है वू खाली यू.पी सौं नायं निकरैगौ.
हमाये बृज प्रदेश मे यू.पी से आवेंगे आगरा,मथुरा,फिरोज़ाबाद,शिकोहाबाद,इटावा,मैनपुरी,कन्नौज,फरुखाबाद, एटा, अलीगढ़्,बुलन्दशहर के ग्यारै ज़िले, संग में आएगौ राजस्थान कौ भरतपुर ,मध्य प्रदेश के भिंड, मोरेना,ग्वालियर ज़िले. सब मिलाय कैं बनेंगे पन्द्रह ज़िले.

और सुन लेउ, जी हरित -फरित प्रदेश का बला है? का मतलब है हरित -फरित प्रदेश कौ ? हमाई संस्कृति ,हमाई सभ्यता, हमाई बोल-चाल ,हमाये संस्कार्, हमाऔ खान-पान सब तो अलग है पच्छिम यू.पी सें. हमें नायं मतलब काऊ हरित-फरित प्रदेश की मांग सें, हमें तौ अलग्गई चईयें हमाऔ बृज प्रदेश.

राधे-राधे. अब तौ लै कैंई रहेंगे. कछू करकें देख लियो.
बोलो वृन्दावन बिहारी लाल की --जै.

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

इस तरह का बंटवारा देश के हित में नही है.....यह तो नेताओ के हित मे है....इस से आपसी मेल मिलाप कम हो सकता है।....जो भविष्य मे कहीं मुसीबत ना खड़ी कर दे।

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi said...

मैं पूरी तरह असहमत हूं बाली जी.
यदि प्रसाशकीय दृष्टि से देश को राज्यों में विभाजित् न किया जाता तो क्या एक केन्द्र सरकार से नियंत्रित हो सकता था भारत ?

हर प्रसाशकीय इकाई को चलाने के लिये उसका विभाजन आवश्यक है. तभी तो ज़िले,तह्सील, ब्लौक, पंचायत ,नगर निगम, नगर पालिका आदि का तंत्र बनाया गया है.